एक नारा याद आता है,जिसकी जीतनी हिस्सेदारी,उसकी उतनी भागीदारी।कौम को अपनी भागीदारी चाहिए,ये कोई भीख नही है,ये हमारा हक है और मजलिस इसे लेकर रहेगी।चाहे प्यार से मिले या उसे ज़बरदस्ती छीनना पढ़े।
एक नारा याद आता है,जिसकी जीतनी हिस्सेदारी,उसकी उतनी भागीदारी।कौम को अपनी भागीदारी चाहिए,ये कोई भीख नही है,ये हमारा हक है और मजलिस इसे लेकर रहेगी।चाहे प्यार से मिले या उसे ज़बरदस्ती छीनना पढ़े।
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